मानव अधिकार दिवस

Awarness Talk by
Adv.Ankita R.Jaiswal
Civil &Criminal Court Warud.
Dist Amravati.

दोस्तों जिस तरह से हमने संविधान दिन सेलिब्रेट किया है उसी तरह से 10 दिसंबर यह मानव अधिकार दिन करके मनाया जाता है. आज के कथन में मैं आपको मानव अधिकार दिन क्या है ?क्यों मनाया जाता है? उसकी परिभाषा क्या है ?यह बताने वाली हूं
मानव अधिकार की परिभाषा:
मानवाधिकारों को सार्वभौमिक अधिकार कहा जाता है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपना लिंग, जाति, पंथ, धर्म, संस्कृति, सामाजिक/आर्थिक स्थिति या स्थान की परवाह किए बिना हकदार है। ये वो मानदंड हैं जो मानव व्यवहार के कुछ मानकों का वर्णन करते हैं और कानून द्वारा संरक्षित हैं। पृथ्वी पर रहने वाले हर इंसान को जीवित रहने का अधिकार है।प्रत्येक मनुष्य को जीने और अपना विकास करने का अधिकार है । यही विचार मानवाधिकार की नींव है । युद्‌ध की तुलना में सांप्रदायिक, वंशगत संघर्षों तथा आतंकवादी गतिविधियों में अपार जन-धन की हानि होती है । स्त्रियों, बच्चों और उपेक्षित वर्गों का बड़ी मात्रा में शौषण होता दिखाई देता है । ऐसी घटनाएँ विश्व स्तर पर अशांति उत्पन्न करने में कारण बन जाती हैं । मानवाधिकारों के प्रति हमारी उदासीनता और तटस्थता के कारण जनहानि में वृद्‌धि हो रही है । यदि विश्व में व्याप्त आतंकवाद, शोषण और असुरक्षा को समाप्त करना है तो मानवाधिकारों के प्रति हमारी जागरूकता को बढ़ाना चाहिए । हम सभी को मानवाधिकारों के संवर्धन हेतु ठोस प्रयास करने चाहीऐ।
मानवाधिकार हर व्यक्ति का नैसर्गिक या प्राकृतिक अधिकार है। इसके दायरे में जीवन, आज़ादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार आता है। इसके अलावा गरिमामय जीवन जीने का अधिकार, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी इसमें शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाए गए मानवाधिकार संबंधी घोषणापत्र में भी कहा गया था कि मानव के बुनियादी अधिकार किसी भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, भाषा, समाज आदि से इतर होते हैं। रही बात मौलिक अधिकारों की तो ये देश के संविधान में उल्लिखित अधिकार है। ये अधिकार देश के नागरिकों को और किन्हीं परिस्थितियों में देश में निवास कर रहे सभी लोगों को प्राप्त होते हैं। यहाँ पर एक बात और स्पष्ट कर देना उचित है कि मौलिक अधिकार के कुछ तत्त्व मानवाधिकार के अंतर्गत भी आते हैं जैसे- जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार।
मानवाधिकार – स्वरूप और अर्थ:
प्रत्येक मनुष्य को धर्म लिंग, जाति, वंश और देश के आधार पर किसी भी प्रकार का भेद न करते हुए सम्मानपूर्वक जीने और अपना विकास करने का अधिकार प्राप्त है । इस अधिकार को मानवाधिकार कहते है ।मानवाधिकार मनुष्य को जन्मत: प्राप्त होते हैं । ये अधिकार किसी शासन, संगठन. अथवा अन्य किसी व्यक्ति द्‌वारा दिए नहीं जाते हैं । अत: इन्हें छीनने का अधिकार किसी को नहीं है । मानवाधिकार का स्वरूप वैश्विक है ।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का अस्तित्व:
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद 1948 में 48 देशों के समूह ने समूची मानव-जाति के मूलभूत अधिकारों की व्याख्या करते हुए एक चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे। इसमें माना गया था कि व्यक्ति के मानवाधिकारों की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिये। भारत ने भी इस पर सहमति जताते हुए संयुक्त राष्ट्र के इस चार्टर पर हस्ताक्षर किये। हालाँकि देश में मानवाधिकारों से जुड़ी एक स्वतंत्र संस्था बनाने में 45 वर्ष लग गए और तब कहीं जाकर 1993 में NHRC अर्थात् राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अस्तित्व में आया जो समय-समय पर मानवाधिकारों के हनन के संदर्भ में केंद्र तथा राज्यों को अपनी अनुशंसाएँ भेजता है।
कुछ महत्वपूर्ण मानवाधिकार:
१)जीने का अधिकार: प्रत्येक मनुष्य को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार प्राप्त है । इसे जीने का अधिकार कहते हैं । मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होने और अपना विकास करने के लिए अनुकूल परिस्थिति में जीने को सम्मानजनक जीवन जीना कहते हैं ।
२)विचार, अभिव्यक्ति, धर्म आदि की स्वतंत्रता: अपना सर्वांगीण विकास सिद्‌ध करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को विचार करने और उन विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए । मनुष्य विचारशील और बुद्‌धिनिष्ठ होता है । इसलिए उसे विचार करने तथा उन विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता की आवश्यकता है । धार्मिक स्वतंत्रता भी महत्वपूर्ण मानवाधिकार है
३)राष्ट्रीयता प्राप्त करने की स्वतंत्रता: प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश का नागरिक बनने का अधिकार है । इसे राष्ट्रीयता का अधिकार कहते है । नागरिक के रूप में व्यक्ति को मतदान करना, चुनाव लड़ना जैसे राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं । इससे देश के प्रशासन में प्रतिभागी होने का अवसर प्राप्त होता है ।
४)गिरफ्तारी और स्थानबद्‌धता से संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार: किसी भी व्यक्ति को अकारण रूप से गिरफ्तार करना और जेल में बंद करना मानवाधिकार के विरुद्‌ध है । इस मानवाधिकार की रक्षा हेतु प्रत्येक देश में समुचित कानून-व्यवस्था और न्यायप्रणाली होनी चाहिए ।
५)शिक्षा का अधिकार: शिक्षा प्राप्त करने से मनुष्य का अज्ञान दूर होता है । उन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं । अन्याय और अत्याचार के विरुद्‌ध संघर्ष करने की सजगता उत्पन्न होती है । अत: शिक्षा के अधिकार को महत्वपूर्ण मानवाधिकार माना जाता है ।
मानवाधिकार और संयुक्त राष्ट्र:
संयुक्त राष्ट्र ने अपने उद्‌देश्यों में मानवाधिकार को महत्वपूर्ण स्थान दिया है । उसके उद्‌देश्यों में मानवाधिकार का प्रचार एवं प्रसार एक महत्वपूर्ण उद्‌देश्य है । १० दिसंबर १९४८ को संयुक्त राष्ट्र द्‌वारा जारी किए गए मानवाधिकार के घोषणापत्र ने मानवाधिकारों की नींव रखी । यह घोषणापत्र में३० सूत्र है । संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राष्ट्रों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने देश के नागरिकों को ये अधिकार प्रदान करें ।
कुछ महत्वपूर्ण सूत्र
(१) व्यक्ति किसी भी लिंग, धर्म और वर्ण का हो परंतु उसे मानवाधिकार का उपयोग करने का अधिकार प्राप्त है ।
(२) प्रत्येक व्यक्ति को संचरण की स्वतंत्रता प्राप्त है ।
(३) यदि व्यक्ति अपने देश में स्वयं को असुरक्षित मान रहा हो तो उसे विश्व के किसी भी भाग में रहने का अधिकार प्राप्त है ।
(४) प्रत्येक व्यक्ति को अवैध गिरफ्तारी से अपना बचाव करने की स्वतंत्रता प्राप्त है ।
(५) प्रत्येक व्यक्ति को संपत्ति रखने का अधिकार है ।
(६) प्रत्येक व्यक्ति को वैचारिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है ।
(७) प्रत्येक व्यक्ति को संगठन बनाने की स्वतंत्रता है ।
(८) प्रत्येक व्यक्ति को मतदान का अधिकार प्राप्त है ।
(९) सभी स्त्री-पुरुषों को श्रम करने और विश्राम करने का अधिकार प्राप्त है ।
१०) प्राथमिक शिक्षा, कला और साहित्य का आस्वादन प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है ।
(११) प्रत्येक व्यक्ति को व्यवसाय करने की स्वतंत्रता है ।
(१२) प्रत्येक व्यक्ति को अपना निजी जीवन, प्रतिष्ठा और गरिमा को अबाधित रखने का अधिकार प्राप्त है ।
मानवाधिकारों का संरक्षण करने तथा इन अधिकारों पर होनेवाले आक्रमणों को दूर करने के लिए संगठन और आंदोलन प्रारंभ होंगे; तभी मानवाधिकारों की रक्षा प्रभावशाली ढंग से हो सकती है । इस विषय में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ स्वयंसेवी संगठन कार्य कर रहे हैं ।
राष्ट्रीय मानवाधिकार: उपाय योजना
मानवाधिकारों का संरक्षण करने हेतु भारत ने अनेक प्रकार की उपाय योजनाएँ की है । ई.स. १९९३ में स्थापित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की मानवाधिकार स्थापना उनमें से एक उपाय योजना है ।
मानव अधिकार आयोग की संरचना:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक अध्यक्ष और अन्य छह सदस्य होते है । आयोग के अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की नियुक्ति की जाती है । उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय के विद्‌यमान अथवा अवकाशप्राप्त न्यायाधीश इस आयोग के सदस्य होते है । राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के और राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्षों को भी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्यता दी जाती है । मानवाधिकार संरक्षण के क्षेत्र में प्रत्यक्ष कार्य किए हुए दो अनुभवी विशेषज्ञ भी इस आयोग के सदस्य होते हैं ।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
भारत ने मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन और राज्य मानवाधिकार आयोगों के गठन की व्यवस्था करके मानवाधिकारों के उल्लंघनों से निपटने हेतु एक मंच प्रदान किया है।
इस आयोग ने देश में आम नागरिकों, बच्चों, महिलाओं, वृद्धजनों के मानवाधिकारों, LGBT समुदाय के लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिये समय-समय पर अपनी सिफ़ारिशें सरकार तक पहुँचाई हैं और सरकार ने कई सिफारिशों पर अमल करते हुए संविधान में उपयुक्त संशोधन भी किये हैं।
मानवाधिकार आयोग का कार्य:
देश में कहीं भी मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो यह आयोग उसकी जाँच करता है । मानवाधिकारों का संरक्षण करना इस आयोग का महत्वपूर्ण कार्य है । महाराष्ट्र राज्य ने भी मानवाधिकार आयोग की स्थापना की है ।
इसके अलावा भी यह आयोग कई और कार्य करता है जैसे-
१) समाज के विभिन्न वर्गों में मानवाधिकार से संबंधित जागरूकता बढ़ाना।
२) किसी लंबित वाद के मामले में न्यायालय की सहमति से उस वाद का निपटारा करवाना।
३)लोकसेवकों द्वारा किसी भी पीड़ित व्यक्ति या उसके सहायतार्थ किसी अन्य व्यक्ति के मानवाधिकारों के हनन के मामलों की शिकायत की सुनवाई करना।
४)मानसिक अस्पताल अथवा किसी अन्य संस्थान में कैदी के रूप में रह रहे व्यक्ति के जीवन की स्थिति की जाँच की व्यवस्था करना।
५)संविधान तथा अन्य कानूनों के संदर्भ में मानवाधिकारों के संरक्षण के प्रावधानों की समीक्षा करना तथा ऐसे प्रावधानों को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करने के लिये सिफारिश करना
,६)आतंकवाद या अन्य विध्वंसक कार्य के संदर्भ में मानवाधिकार को सीमित करने की जाँच करना।
७) गैर-सरकारी संगठनों तथा अन्य ऐसे संगठनों को बढ़ावा देना जो मानवाधिकार को प्रोत्साहित करने तथा संरक्षण देने के कार्य में शामिल हों इत्यादि।
भारत में मानवाधिकार आयोग के सामने क्या चुनौतियाँ है?
केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारें आयोग की सिफारिशें मानने के लिये बाध्य नहीं हैं। लिहाज़ा मानवाधिकारों के मज़बूती से प्रभावी नहीं रहने का सबसे बड़ा कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव ही है। यही कारण है कि हर ज़िले में एक मानवाधिकार न्यायालय की स्थापना का प्रावधान कागज़ो पर ही रह गया।
पदों का खाली पड़े रहना, संसाधनों की कमी, मानवाधिकारों के प्रति जनजागरूकता की कमी, अत्यधिक शिकायतें प्राप्त होना और आयोगों के अंदर नौकरशाही ढर्रे की कार्यशैली इत्यादि इन आयोगों की समस्याएँ रही हैं।
उपाय योजना/ सुझाव:
मानवाधिकार आयोग को शिकायतों का निपटारा करने के लिये उपयोगी मानदंड निर्धारित करने चाहिये। ऐसे मुद्दों में कार्रवाई के निर्धारण तथा उसके समन्वयन के लिये आयोग में नोडल अधिकारी नियुक्त किये जाएँ और कार्यवाही को अधिक सफल बनाने के लिये प्रत्येक सांविधिक आयोग के अंदर एक आंतरिक पद्धति विकसित की जाए।
केंद्र तथा राज्य सरकारों को भी गंभीर अपराधों से निपटने के लिये सक्रियता के साथ कदम उठाने चाहिये। इसके लिये सरकारें मानवाधिकार आयोग की सहायता भी ले सकती हैं। भीड़तंत्र को लेकर भी सरकार को सख्त कानून अपनाने की जरूरत है। साथ ही सरकारों तथा मीडिया को गंभीर मसलों के साथ-साथ आम मसलों पर अपनी उदासीनता को त्यागने की दरकार है।
स्वयं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित संबद्ध राज्य आयोगों का भी यह कर्त्तव्य होना चाहिये कि वह देश के संजीदा मसले पर अपनी मौजूदगी जताकर उन समस्यायों का समाधान खोजने में सरकार की सहायता करें जो उनके अधिकार क्षेत्र के अंदर नहीं आते। तभी सही मायनों में देश में मानवाधिकारों की रक्षा हो पाएगी जब सभी संस्थाएँ मिलजुल कर देश की एकता-अखंडता को बरकरार रखने में एक-दूसरे का सहयोग करेंगी। ज़रूरत है तो सिर्फ एक नेक पहल की और जागरूकता की.।
आशा करती हूं कि आप सभी को मानव अधिकार दिन का महत्व समझाने के लिए में सफल रही। साथ ही मानव अधिकार दिन की आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

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