क्या सही में लड़कियां सुरक्षित है?
Adv. Ankita R. Jaiswal Civil And Criminal Court Warud. Dist Amravati.
क्या हमें रेप जैसे केसेस में फास्ट ट्रैक कोर्ट और दिशा कानून की आवश्यकता नहीं है?
भारतीय संस्कृती मे लडकिया एव औरतो को दुर्गा ,काली, लक्ष्मी स्वरूप माना जाता है और दुसरी तरफ आज के समाज मे लडकियो के साथ दुष्कर्म बलात्कार, लडकियो को जलाना इस तरह की भयंकर घटना को अंजाम दिया जा रहा है. क्या सच मे समाज मे रहने वाले इंसान को अपने सोच बदलने की जरूरत नही है?
निर्भया केस, हैदराबाद सामूहिक बलात्कार, हाथरस केस जैसे कई केसेस दिन ब दिन बढ़ रहे हैं, हाल ही में 8 दिनों में दो जघन्य अपराधों को अंजाम दिया गया, पहली घटना दिवाली के दिन की बीड़ जिले की जहां पर आधी रात को एक हैवान ने एक बेटी को पेट्रोल से जला दिया, क्या उस लड़की को जीने का अधिकार नहीं था? दूसरी घटना नरखेड तालुके की जहां 13 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया जाता है, उस 13 साल की बच्ची को अपने भविष्य की जानिव भी नहीं है, महाराष्ट्र में इन दोनों जगह पर दो घटनाएं वह भी लड़कियों के साथ यह शर्मसार कर देने वाली बात नहीं क्या? कितनी बार लड़कियां अपना बलिदान दे कितनी बार इन हैवानियत से लड़े? आखिर न्याय कब मिले लड़कियों को इस समाज से? लड़कियां भी इसी समाज का हिस्सा है क्या इंसान यह भूल चुका है? ऐसे कई सवाल हमारे सामने खड़े होते हैं,एक तरफ लड़कियों के साथ दुष्कर्म बलात्कार जैसी घटनाएं, दूसरी और आधी रात को लड़की को जला दिया जाता है इन सारी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए कोई सख्त कानून की आवश्यकता नहीं है क्या? या फिर जो कानून है उसमें बदलाव की आवश्यकता नहीं है? मेरे हिसाब से महाराष्ट्र में भी दिशा कानून को लागू कर देना चाहिए और साथ ही में फास्ट ट्रेक कोर्ट जो जल्द से जल्द निपटारा करें ऐसे जघन्य अपराधों में वह सिर्फ नाम के ही नहीं काम के भी होने चाहिए ऐसे जघन्य अपराधों में आरोपियों को सिर्फ और सिर्फ फांसी की ही शिक्षा देनी चाहिए साथ ही में सरकार ने लड़कियों के सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए जिसमें लड़कियां सेल्फ डिफेंस को भी इस्तेमाल कर सकें समय आने पर अपनी सुरक्षा के लिए तलवार भी उठा सके. और उन्ह हैवान को उनकी जगह दिखा सके, ऐसे कई केसेस दिन-ब-दिन हो रहे हैं जिसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, साथी में दोनों घटनाओं में पीड़िता को जल्द से जल्द न्याय मिले यही आशा करती हूं.