गोंडवाना सांस्कृतिक, सामाजिक, एवं राजनैतिक आंदोलन के एक महान युग का अंत

देश भर में गोंडवाना आंदोलन को गांव-गांव व शहर शहर ही देश की राजधानी दिल्ली में पहुंचाकर सरकार को गोंडवाना आंदोलन की ताकत व एकता का एहसास कराने वाले गोंडवाना रत्न, गोंडवाना समग्र क्रांित आंदोलन के महानायक, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष दादा हीरा सिंह मरकाम जी अब हमारे बीच नहीं रहे। हम यह कह सकते है कि गोंडवाना सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीितक आंदोलन के एक महान युग का अंत हो गया है। गोंडवाना आंदोलन में दादा मोतीरावण कंगाली, पूर्व विधायक मनमोहन शाह बट्टी जी के बाद अब गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी के निधन से गोंडवाना आंदोलन की राह में मजबूती में कहीं न कहीं कमजोरी तो आई है। वहीं उन्होंने गोंडवाना आंदोलन का जो बीज बोया, सिंचित किया, देखरेख किया और समाज के युवाशक्ति, पितृशक्ति-मातृशक्ति के हाथों में गोंडवाना आंदोलन के मजबूत आधार स्तंभ को सौंपा है, उस पर मंजिल पाने की जिम्मेदारी दी है।
अंतिम संस्कार गृह ग्राम तिवरता में होगा
गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी के निज सचिव श्याम सिंह मरकाम ने जानकारी देते हुये बताया कि लगभग 80 वर्ष की उम्र में गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी का निधन 28 अक्टूबर 2020 दिन बुधवार को शाम लगभग 6.30 बजे हो गया है। उनका अंतिम संस्कार उनके गृह ग्राम में 29 अक्टूबर 2020 को दोपहर बाद किया जायेगा।
पैदल चलकर पहुंचाया देश भर में गोंडवाना आंदोलन
हम आपको बता दे कि गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने गोंडवाना समग्र क्रांति आंदोलन को पूरे देश भर में पहुंचाने के लिये कभी साधन संसाधन की सुविधा को महत्व नहीं दिया है। कई कई किलोमीटर पैदल चलकर, बस, रेल, दुपहिया वाहन यहां तक कि जो भी साधन उन्हें मिला उससे उन्होंने सफर पूरा करते हुये कार्यक्रमों में पहुंचकर गोंडवाना आंदोलन को बढ़ाने में अपनी विशेष भूमिका निभाया है।
कभी थाली में अनाज का एक दाना नहीं छोड़ा
इतना ही नहीं कार्यक्रम के बीच रास्ते में एवं कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने के बाद उन्हें कब कैसा भोजन करने को मिलता था, इसका भी कोई निश्चित समय नहीं रहता था हां लेकिन देखने वालों ने यह जरूर देखा है कि गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी ने कभी थाली या पत्तल में अनाज का दाना भी नहीं छोड़ा है। इससे यह समझ आता है कि प्रकृति की अनुपम देन और अन्नदाता की मेहनत अनाज का कितना सम्मान गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम करते थे।
सामाजिक, शैक्षणिक-सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक चेतना किया जागृत
हम आपको बता दे कि गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी भले ही आज हमारे बीच नहीं है लेकिन यदि बीते समय की बात करें तो उन्होंने पूरे देश में गोंडवाना का नाम पहुंचा दिया है। गोंडवाना आंदोलन के माध्यम से उन्होंने समाजिक, शैक्षणिक-सांस्कृतिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक चेतना को जागृत करने का काम करने में कभी कमी नहीं किया। साधन संसाधन की कमी के बाद आज पूरे देश में गोंडवाना आंदोलन की आवाज देश के प्रत्येक राज्यों में गूंज रही है। देश की राजधानी में वन अधिकार अधिनियम को लेकर किये गये आंदोलन ने गोंडवाना आंदोलन की प्रमुख पहचान स्थापित किया था।
अंगूठा अंदर कर मुक्का बनाकर देते रहे हमेशा समाजिक एकता का संदेश
गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी, भले ही आज हमारे बीच नहीं है लेकिन गोंडवाना सम्मेलन में कार्यक्रमों के दौरान जब वे अपने मुखारबिंद से भाषण देते रहे है तो निरंतर यदि 5 घंटे भी उन्होंने भाषण संदेश दिया है तो उनके दोनो पैर सीधे रहते थे, कभी पैरों को झुकते हुये किसी ने नहीं देखा है। वही बीते दिनों विश्व आदिवासी दिवस पर के अवसर पर जब घर पर ही विश्व आदिवासी दिवस का कार्यक्रम उन्होंने मनाया तो उन्होंने अपने हाथों से मुक्का बनाकर अंगूठा अंदर कर एकता का संदेश दिया। कार्यक्रमों में संकल्प के दौरान जब वे मुक्का बनाने का आहवान करते रहे है तो वे हमेशा अंगूठा अंदर कर मुक्का बनाने को कहते रहे है वैसा ही मुक्का समाज के लिये हमेशा एकता का संदेश बनकर मजबूती का संदेश समाज को देता रहेगा।
गोंडवाना समय समाचार का प्रथम का अंक का किया था शुभारंभ
हम आपको बता दे कि गोंडवाना समय समाचार पत्र का प्रथम अंक के प्रकाशन का शुभारंभ गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी के हाथों सिवनी जिले के केवलारी विकासखंड में किया गया था।
दैनिक गोंडवाना समय समाचार पत्र के कार्यालय में सिवनी पहुंचकर गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी के द्वारा समय-समय पर मार्गदर्शन देने के साथ ही दैनिक गोंडवाना समय की प्रिटिंग प्रेस का शुभारंभ भी गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी के हाथों ही हुआ था। दैनिक गोंडवाना समय का मनोबल बढ़ाने के लिये गोंडवाना रत्न दादा हीरा सिंह मरकाम जी हमेशा साक्षी बनकर प्रेरणा व साहस देते रहेंगे।

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